चाणक्य-नीति ( दोहे )
*चाणक्य-नीति के दोहे*
तिनका-छप्पर रोक दे,तेज वृष्टि की धार।
सबल एकता थाम ले,प्रबल शत्रु का वार।।
दुर्जन-संगति त्याग कर,रखें साधु सँग प्रीति।
करें भजन प्रभु की सतत,यही मनुज की रीति।।
बढ़े नीर में तेल खुद, दिया योग्य को दान।
अति लघु चर्चा दुष्ट सँग,बुद्धिमान को ज्ञान ।।
कर्म पूर्व भल सोच से,कभी न नर पछताय।
प्रगतिशील जन-नीति यह,प्रीति बढ़े जग धाय।।
विनय-दान-तप-वीरता,नीति-निपुणता-ज्ञान।
ले डूबे नर को त्वरित,यदि होता अभिमान।।
©डॉ0हरि नाथ मिश्र
९९१९४४६३७२
Sushi saxena
14-Feb-2024 05:13 PM
👌👏
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Mohammed urooj khan
12-Feb-2024 01:55 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
10-Feb-2024 11:52 PM
👌👏
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